1. भोजन एवं मानव स्वास्थ्य


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ोज एवं ान ्वास्थ्य
(FOOD AND HUMAN HEALT)
पोषण जीवन का आधार है, शरीर के सुचारु संचालन हेतु
संतुलित भोजन आवश्यक है। भोजन मे प्रोटीन,
कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण की कमी से शरीर मे
रोग उत्पन्न हो जाते है।
पोषण के विभिन्न तत्व हमारे शरीर की विभिन्न
आवश्यकताओं की पूर्ति करते है। अत: पोषण मे जिस तत्व
की कमी होगी उसके द्वारा किया जाने वाला कार्य नहीं
होगा।
संतुलित भोजन
संतुलित भोजन वह भोजन है जिसमे सभी आवश्यक
पोषक पदार्थ जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, वसा,
खनिज लवण तथा जल उचित मात्रा मे उपलब्ध हो।
असंतुलित भोजन
असंतुलित भोजन वह भोजन है जिसमे किसी भी
पोषक पदार्थ की कमी या अनुपलब्धता हो
कुपोषण
जब लम्बे समय तक पोषण मे किसी एक या अधिक
पोषक तत्वो की कमी हो तो उसे कुपोषण कहते है। कुपोषण के
शरीर पर कई दुष्प्रभाव देखने को मिलते है। कुपोषण का
प्रभाव शारीरिक मानसिक दोनो प्रकार की दुर्बलताओं के
रूप मे प्रकट होता है
.1 विटामिन कुपोषण
विटामिन भोजन का सुक्ष्म भाग होते है मगर कार्य
की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते है।
क्र.सं.
विटामिन
रोग
कार्य
1.
विटामिन A
रतौन्धी
प्रकाश या रात मे दिखाई देना
2.
थाईमीन B
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बेरीबेरी
हृदय कि धङकन कम, पेशियां एवं तंत्रिकाए कमजोर
3.
राईबोफ्लेविन B
2
राईबोफ्लेविनोसिस
मुख के किनारे एवं होंठ की त्वचा का फटना, स्मृति में कमी
4.
नियासिन B
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पेलेग्रा
जीभ की त्वचा पर पपङियां पङना
5.
एसकॉर्बिक अम्ल C
स्कर्वी
मसुङों से खुन आना, त्वचा पर चकते बनना
6.
केल्सिफिरोल D
रिकेट्स
पैरो की हड्डियाँ मुङकर घुटने पास पास जाना
2 प्रोटीन कुपोषण
मुख्यतः छोटे बच्चे इससे प्रभावित होते है।
गर्भवती महिलाओं और किशोरावस्था में प्रोटीन आवश्यक
पोषक है।
कवाशियोरकोर
-
प्रोटीन की कमी से
क्वाशियोरकोर रोग हो जाता है इसमे बच्चे का पेट फुल
जाता है, उसे भुख कम लगती है, स्वभाव चिङचिङा हो जाता
है, त्वचा पीली, शुष्क, काली, धब्बेदार होकर फटने लगती
है।
मेरस्मस -
जब प्रोटीन के साथ साथ पर्याप्त
ऊर्जा की कमी होती है तो शरीर सुखकर दुर्बल हो जाता है
आँखे कांतिहीन अन्दर धँस जाती है


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3 खनिज कुपोषण
लौह तत्वआयरन रुधिर के हिमोग्लोबिन का भाग
होता है इसकी कमी रक्तहीनता (एनीमिया) होकर चेहरा
पीला पङ जाता है।
कैल्शियम - कैल्शियम हड्डियो को मजबूत बनाता है
इसकी कमी से हड्डियाँ कमजोर भंगुर प्रकृती की हो जाती
है।
आयोडीन आयोडीन की कमी से थाइरॉइड ग्रंथि की
क्रिया धीमी पङ जाती है, जिससे गलगन्ड या घेंघा (गॉयटर)
रोग हो जाता है
तत्व
प्रमुख स्रोत
सोडियम
दुध, अंडे, सामान्य नमक, मछली, माँस।
पोटैशियम
सभी खाद्य पदार्थों मे।
कैल्शियम
दुध, हरी सब्जियाँ, अंडे
फास्फोरस
दुध, हरी सब्जियाँ, बाजरा, रागी, यकृत, वृक्क,
गाजर, गुङ
लौह तत्व
दुध, हरी सब्जियाँ, बाजरा, रागी, यकृत, वृक्क,
सुखे मेवे
आयोडीन
हरी-सब्जियाँ, नमक, समुद्री-भोजन, मछली
मानव स्वास्थ्य
पीने योग्य जल के गुण -
1. जल मे आँखो से दिखने वाले कण, वनस्पती हो।
2. जल मे हानि पहुचाने वाले सुक्ष्म जीव हो।
3. जल का pH सन्तुलित हो
4. जल मे पर्याप्त मात्रा मे ऑक्सीजन घुली हो।
प्रचुर मात्रा में जल पीने के लाभ -
1. प्रत्येक दिन 8-10 गिलास पानी पीने से शरीर का
उपापचय सही तरीके से कार्य करता है तथा शरीर में
सुस्ती एवं ऊर्जा बनी रहती है
2. पानी से शरीर में रेशों (फाइबर) की पर्याप्त मात्रा बनी
रहती है,जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती
है
3. पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से शरीर में किसी प्रकार
की एलर्जी की आशंका नहीं रहती
4. प्रचुर मात्रा में पानी पीने से अनावश्यक चर्बी जमा
नहीं होती है साथ ही पथरी होने का खतरा भी नहीं रहता
5. खूब जल पीने के फेफड़ों में संक्रमण अस्थमा और आँत की
बीमारियां भी नहीं होती है।
दुषित जल के दुष्प्रभाव -
दुषित जल मे कई रोगकारक सूक्ष्म जीव होते हैं
जिनमें जीवाणु, प्रोटोजोआ कृमि आदि प्रमुख है जिनसे हैजा
पेचिश जैसी बीमारियां हो जाती है
गन्दे पाई से कई संक्रामक बिमारिया फैलती है
इससे वायरल संक्रमण भी हो सकता है जिससे हिपेटाइटिस,
कोलेरा, टायफाइड, फ्लू और पीलिया जैसी बिमारियाँ हो
जाती है

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बाला या नारू रोग की रोगजनक
ड्रेकनकुलस
मेडीनेंसिस
नामक मादा कृमी के अंडे से जल संदूषित हो जाता
है। एसे संदूषित जल के उपयोग से यह रोग दूसरे लोगों में भी
फैल जाता है। यह रोग एक समय में राजस्थान में गंभीर
समस्या थी। नारू उन्मूलन का्यक्रम के प्रयासों के बाद सन्
2000 के बाद इसका कोई रोगी नहीं पाया गया।
मोटापा
मोटापा वह स्थिति होती है जब अत्यधिक शारीरिक
वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वह
स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है। यह
संभावित आयु को कम कर देती है
BMI (body mass index) = शरीर भार सूचकांक
BMI मानव भार लम्बाई का अनुपात होता है जब ये
30kg/m
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से अधिक हो तब मोटापा होता है।
मोटापे से सम्बद्ध रोग
हृदय रोग, मधुमेह, निद्राकालीन श्वास समस्या, कई
प्रकार के कैंसर और अस्थिसन्ध्यार्थी
मोटापे के कारण
1. ऊर्जा के सेवन और उपयोग के बीच असंतुलन।
2. अधिक वसायुक्त भोजन करना।
3. जंक फूड कृत्रिम भोजन करना।
4. कम व्यायाम और स्थिर जीवनयापन
5. अवटु अल्पक्रियता आदि
रक्तचाप -
रुधिर द्वारा रुधिरवाहिकाओ की दीवारो के मध्य जो
दाब लगता है, उसे रक्त्दाब कहते है किसी व्यक्ति का
रक्तदाब सिस्टोलिक (प्रकुंचन दाब) डायास्टोलिक
(अनुशिथिलन दाब) के रूप मे दर्शाया जाता है जैसे
120
/
80
यहाँ 120 सिस्टोलिक (प्रकुंचन दाब) 80 डायास्टोलिक
(अनुशिथिलन दाब) को दर्शाता है।
एक सामान्य व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तदाब 90
से 120 mm डायास्टोलिक रक्तदाब 60 से 80 mm के
बीच होता है।
निम्न रक्तदाब
जब धमनियों मे रक्त का प्रवाह कम होने लगता है
तो मस्तिष्क, हृदय था गुर्दे जैसी महत्व्पूर्ण इन्द्रियों मे
ऑक्सीजन पोष्टिक आहार नही पहुँच पातेजिससे ये अंग
स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते है
उच्च रक्तदाब
जब धमनियों मे रक्त का प्रवाह अधिक होने लगता
है तो उसे उच्च रक्तदाब कहते है इससे शरीर मे आंतरिक
रक्त स्रावण हो सकता है। यह चिंता, ईर्ष्या, क्रोध, भ्रम,
मैदा से बने खाद्य पदार्थ, चीनी, मसाले, तेल, घी, आचार,
मिठाईयाँ, माँस, चाय, सिगरेट शराब के सेवन से तथा
श्रमहीन जीवन व्यायाम के अभाव से हो सकता है।
एसे मरीजो को पोटैशियम, कैल्शियम,
मैग्नीशियम की संतुलित मात्रा लेनी चाहिए। रेशेयुक्त
पदार्थ खुब खाएं तथा इसके साथ ही नियमित व्यायाम करने
चाहिए संतृप्त वसा (माँस, वनस्पति घी) कि मात्रा कम
करनी चाहिए। धुम्रपान मदिरापान नहीं करना चाहिए
नशीले पदार्थ
1. गुटखा
सुपारी के टुकङों, कत्था, चुना, संश्लेषित खुशबू,
धातुओ के वर्क आदि पदार्थो के मिश्रण से गुटखा तैयार
किया जाता है तथा कुव्ह्ह मे तम्बाकू भी डाला जाता है
इससे
सब्म्युकस फाईब्रोसिस
नामक रोग हो जाता है,
जिसमे जबङे की माँसपेशियाँ कठोर हो जाती है तथा जबङा
ठीक से खुलता नहीं है।
2. तम्बाकू

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तम्बाकू पादप (निकोटिएना टॉब्बेकम)
सोलेनेसी
कुल का
पादप है इसकी पत्तियो मे 1-8 प्रतिशत तक निकोटिन
नामक एल्केलॉयड पाया जाता है। इसका उपयोग बीङी,
सिगरेट, सिगार के रूप मे होता है। कई लोग इसे मंजन के रूप मे
काम मे लेते है
तम्बाकू के उपयोग से होने वाली हानियाँ
1. तम्बाकू के निरंतर सेवन से मुँह, जीभ, गला फेफङो का
कैंसर होने की सम्भावना बढ जाती है
2. तम्बाकू का निकोटिन धमनियों की दीवारों को मोटा कर
देता है जिससे रक्तदाब की दर बढ जाती है
3. गर्भवती महिलाओं द्वारा तम्बाकू का सेवन करने पर
भ्रूण विकास की दर धीमी पङ जाती है
4. सिगरेट के धूएँ मे उपस्थित कार्बन मॉनो ऑक्साइड
(CO)लाल रक्त कणिकाओं(RBC) को नष्ट कर देता है।
जिससे रुधिर की परिवहन क्षमता कम हो जाती है।
3. मदिरा
मदिरा का प्रमुख अवयव एथेनॉल (C
2
H
5
OH) होता है।
विभिन्न मदिराओ मे इसकी विभिन्न मात्रा होती है।
मदिरापान के कुप्रभाव-
1. मदिरापान से एथेनॉल रक्त द्वारा यकृत मे पहुँचता है।
तथा एथिलैल्डिहाइड मे बदल जाता है जो विषैला
पदार्थ है
2. एल्कोहॉल से व्यक्ति की कार्य क्षमता मे कमी आती है
तथा दुर्घटना की सम्भावना बढ जाती है।
3. एल्कोहॉल से स्मरण क्षमता मे कमी आती है तथा
तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है
4. इसके प्रभाव से वसीय यकृत रोग हो जाता है जिससे
प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट संश्लेषण पर प्रभाव पङता है
5. इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तथा
सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है।
4. अफीम
अफीम पैपेवर सोमनिफेरम नामक पादप के कच्चे फल के
दुध को सुखाने से बनता है इस दुध मे लगभग 30 प्रकार के
एल्केलॉयड पाए जाते है इनमे से मार्फीन, कोडीन,
निकोटीन, पैपेवरिन, सोमनिफेरीन प्रमुख है। इनमे से
मार्फीन कोडीन का उपयोग दर्द निवारक दवा बनान के
लिए किया जाता है। हेरोईन भी अफीम से बनता है जो अत्यंत
नशीला पदार्थ है।
5. अन्य नशीले पदार्थ -
कोकीन, भाँग, चरस, गाँजा, हशीश, एलएसडी (LSD)
आदि अन्य पदार्थ भी मादक पदार्थो के रूप मे प्रचलन मे है।
इनके सेवन से अपराध प्रवृति मे वृद्धि होती है तथा शारीरिक
मानसिक कमजोरी सामने आती है।
6. दवाओं का दुरुपयोग-
दवाओं जैसे-मार्फीन, ब्युप्रीनोर्फीन, पेथेडीन,
प्रोपोक्सिन, नाइट्राज़िपाम, डाइज़िपाम का दुरुपयोग नशे के
लिए बढा है
कई बच्चे थिनर, पेट्रोल, ऑयल, साल्वेंट, जुता
चिपकाने का गोन्द, सुखे इरेज़र, नेलपॉलिश, मारकर्स,
स्प्रेपेंट और गैसोलीन पदार्थों को सांस के साथ अपने शरीर
मे लेते है।
खाद्य पदार्थों मे मिलावट के दुष्प्रभाव
आज जनसामान्य के बीच एक आम धारणा बनती जा रही
है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ कुछ मिलावट
जरूर है जनसामान्य की चिंता स्वाभाविक ही है
आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की
जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है संपूर्ण देश में मिलावटी
खाद्य-पदार्थों की भरमार हो गई है आजकल नकली दूध,
नकली घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ

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धड़ल्ले से बिक रहा है अगर कोई इन्हें खाकर बीमार पड़
जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि जीवनरक्षक
दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं
एक अनुमान के अनुसार बाजार में उपलब्ध लगभग
30 से 40 प्रतिशत समान में मिलावट होती है खाद्य
पदार्थों में मिलावट की वस्तुओं पर निगाह डालने पर पता
चलता है कि मिलावटी सामानों का निर्माण करने वाले लोग
कितनी चालाकी से लोगों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं और इन
मिलावटी वस्तुओं का प्रयोग करने से लोगों को कितनी
कठिनाइयाँ उठानी पड़ रही हैं
हमारे देश में को्ड ड्रिंक्स में मिलाए जाने वाले
तत्वों के कोई मानक निर्धारित होने से इन शीतल पेयों में
मिलाए जाने वाले तत्वों की क्या मात्रा होनी चाहिए, इसकी
जानकारी सरकार तक को नहीं है दरअसल कोल्ड ड्रिंक्स में
पाए जाने वाले लिडेन, डीडीटी मैलेथियन और
क्लोरपाइरिफॉस को कैंसर, स्नायु, प्रजनन संबंधी बीमारी
और प्रतिरक्षित तंत्र में खराबी के लिए जिम्मेदार माना
जाता है
आजकल दूध भी स्वास्थ्यवर्धक द्रव्य होकर
मात्र मिलावटी तत्वों का नमूना होकर रह गया है जिसके
प्रयोग से लाभ कम हानि ज्यादा है लोग दूध के नाम पर
यूरिया, डिटर्जेंट, सोडा, पोस्टर कलर और रिफाइंड तेल पी
रहे है
बाजार में उपलब्ध खाद्य तेल और घी की भी हालत
बेहद खराब है सरसों के तेल में सत्यानाशी बीज यानी
आर्जीमोन और सस्ता पॉम आयल मिलाया जा रहा है देशी
घी में वनस्पति घी की मिलावट मानों आम बात हो गई है
मिर्च पाउडर में ईंट का चूरा, सौंफ पर हरा रंग, हल्दी में लेड
क्रोमेट पीली मिट्टी, धनिया और मिर्च में गंधक, काली
मिर्च में पपीते के बीज मिलाए जा रहे हैं
फल और सब्जी में चटक रंग के लिए रासायनिक
इंजेक्शन, ताजा दिखने के लिए लेड और कॉपर सोल्युशन का
छिड़काव, सफेदी के लिए फूलगोभी पर सिल्वर नाइट्रेट का
प्रयोग किया जा रहा है चना और अरहर की दाल में खेसारी
दाल, बेसन में मक्का का आटा, दाल और चावल पर बनावटी
रंगों से पालिश की जा रही है
सुरक्षित भोजन के संबंध में भारत में मुख्य कानून
है- 1954 का खाद्य पदार्थ अपमिश्रण निषेध अधिनियम
(PFA) इसका नियम 65 खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों या
मिलावट का नियमन करता है
NOTES-
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